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दुर्मिल सवैया



दुर्मिल सवैया


वह भारत देश महान विशाल, जहाँ करुणा-वरुणा बहती।

वह देश सुजान सयान सदा,  जिस के घर में अमरा  रहती।

वह भारत पावन भूमि विशेष, जहाँ दय -वृत्ति बनी दिखती।

उस भारत से अति स्नेह रखो,जिसमें ममता सजती चलती।।


मत भारत से तकरार करो, इसका अपमान नहीं करना।

यह प्रेममयी रसधार बहावत, दिव्य बने चलते रहना।

अति व्यापक ब्रह्ममयी वसुधा, इस भारत को अपना कहना।

यह हिन्द महा जय हिंद यही, अरुणामृत भाव सदा रखना।


यह देश नहीं यह स्वर्ग समान, यहाँ सुख-शांति बनी रहती।

अधिनायकवाद नहीं मन में, बस सत्य -सुधा हिय में बहती।

यह न्याय सुपंथ बनावत है,प्रिय राह सदा बनती दिखती।

सबके हित की यह बात करे, सबमें शिव-बुद्धि बना करती।


यह देश अलौकिक धाम-धरा, इसके कण में शिवशंकर हैं।

यह धर्म-अधर्म बतावत है,अति व्यापक धर्मधुरंधर है।

यह योग सिखावत ज्ञान बतावत, यज्ञ करावत मंतर है।

प्रिय मानव सुंदर की रचना, करता यह भारत जंतर  है।


सबके प्रति आदर भाव भरा, करता यह देश सुहावन है।

शुभ चिंतक हो उपकार करे, यह भारत उत्तम पावन है।

शुभकर्म सिखावत दृष्टि दिलावत, सौम्य बनावत भावन है।

विनयामृत पान करावत जात,सुपात्र सजावत सावन है।


मधुलोक दिखावत ब्रह्म बतावत, सत्य स्वरूप बना चलता।

सहयोग करावत ध्यान लगावत,इन्द्रिय निग्रह ही करता।

पुरुषार्थ चतुष्ठय को समझावत,आश्रम रूप स्वयं बनता।

प्रियवाद सदा सुखवाद सदा, शिवशंभु सुहाग बना रहता।




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1 Comments

Renu

23-Jan-2023 06:32 PM

👍👍🌺

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